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संदेश

तेरा पंथ सो मेरा पंथ

ये तो पुराण में लिखा है , धवला आदि सिद्धांत ग्रंथों में भी है ।  आगम प्रमाण होने से यह मिथ्यात्व तो नहीं है । हाँ ,सावद्य जरूर है । यहाँ प्रमाण से ज्यादा विवेक की आवश्यकता है । चीजें बदलती भी हैं । पहले भी ये क्रियाएं नियमित नहीं होती थीं , आवश्यकता के अनुसार वर्ष या मास में करने का विधान था ।  दक्षिण में काष्ठ की प्रतिमाएं होती थीं ,उन्हें मजबूत रखने के लिए स्निग्धता के लिए शुद्ध दूध ,दही ,घी आदि से कभी कभी अभिषेक की आवश्यकता पड़ती थी ।  वर्तमान में जल भी शुद्ध मिलना कठिन है तो फिर ये पदार्थ तो और भी दुर्लभ हैं ।  फिर इनका अतिरेक होने लगा और शुद्धता भी सुनिश्चित नहीं होने से तेरापंथ ने इनका कड़ाई से निषेध किया ।  अतः धर्म की किसी भी क्रिया में सावद्य लेश और बहु पुण्य राशि का विधान है , छूट है  न कि सावद्य बहु और लघु पुण्य राशि का  अतः जो विवेक पूर्वक धर्म क्रिया करते हैं वे विचार करते हैं कि हम पुण्य के लिए कर रहे हैं और पाप बांध रहे हैं अतः यह उचित नहीं इसलिए वे सचित्त फूल आदि का प्रयोग नहीं करते । पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह उचित प्रतीत होता है ।अन्यथा अन्य अजैन परंपरा में भी
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प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते

  आगमभासापाइय तित्थयरभगवदो महावीरस्स | जयवंतो जीवंतो पहवंतो वत्ते विस्सम्मि || - तीर्थंकर भगवान् महावीर के आगमों की भाषा प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते      प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन  28/07/24

अपना मन न कमजोर करें

अपना मन न कमजोर करें  ©कुमार अनेकांत वक्त चाहे कितना बोर करे  वो चाहे कितना इग्नोर करे  लोग चाहें कितना शोर करें अपना मन न कमजोर करें  यहां जीत यदि न भी पाओ लोगों से यदि पिछड़ जाओ जग की छद्म आपाधापी में  अपना मन न कमजोर करें  जग जीते और खुद से हारे फिर क्या बचा बोलो प्यारे अपनी दुनिया में जिया करें  अपना मन न कमजोर करें  जो चाहो वो पूरा हो न सके समझें विधि नियत विधान यह होनहार स्वीकार करें  अपना मन न कमजोर करें  क्या हुआ कोई बिछड़ गया जो मिलना वो नहीं मिला असली निधि खुद में खोजें अपना मन न कमजोर करें  जीत वही मनोबल न खोए आत्मानुभूति लक्ष्य संजोए  जग प्रपंच को अब बस करें अपना मन न कमजोर करें 27/7/24

सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच

*सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच* बात 2009 की है जब मेरी पोस्टिंग जयपुर हो गयी थी ,एक दिन बहुत सुबह मैं मॉर्निंग वॉक करता करता संघी जी के मंदिर पहुंच गया । किसी ने कहा कि अभिषेक होने वाला है तो मन में प्रभु का अभिषेक करने की उत्कंठा सहज ही जागृत हो गयी ।  वहीं स्नान करके,शुद्ध वस्त्रों में अभिषेक की कतार में लग गया । वहां देखा कि पहले अभिषेक की बोली लगने वाली थी । मैंने कभी भी बोली लेकर पहले अभिषेक को तवज्जो इसलिए नहीं दी थी कि मेरी मान्यता थी कि ये काम तो सेठों के हैं । मेरे जैसे नौकरी वाले तो  बाद वाले निःशुल्क अभिषेक से पुण्य अर्जित कर लिया करते हैं ।  मैं चुपचाप पीछे हो लिया ।  बोली शुरू हुई 501,601,701,901, मैं चुपचाप सुनता रहा । फिर पंडित जी ने बोली आगे बढ़ाई 1010,1111,1212,1313,1414, मुझे डिजिट सुनकर हंसी आयी  मैंने मजाक में पंडित जी से पूछा ये क्या है ? माइक के शोर के बीच उन्होंने गलती से ये समझा मैं बोली लेना चाह रहा हूँ और उन्होंने अपने आप ही 1515 की बोली मेरे नाम से बोल दी ।  मैंने स्पष्टीकरण देने की कोशिश भी की किन्तु वे आगे बोली लगाने लगे ।मैं भी चुप हो गया । लेकिन संयो

भविष्य के संकेत को देखें (जैन मुनियों से अभद्रता की घटना )

*भविष्य के संकेत को देखें* उत्तराखंड में पूज्य दिगम्बर संतों के साथ एक यूट्यूबर युवक द्वारा जो अभद्र व्यवहार किया गया ,उसके खिलाफ जो विश्व जैन संगठन ने त्वरित कार्यवाही की है वह काबिले तारीफ है ।  इस तरह की कार्यवाही से एक संदेश आम जनता में जाता है कि हमें इस तरह का आचरण नहीं करना चाहिए ।  आश्चर्य है कि इस तरह के प्रकरणों को पूर्व स्थापित बड़ी संस्थाएं गंभीरता से संज्ञान में नहीं ले पाती हैं और त्वरित कार्यवाही भी नहीं कर पा रही हैं ।  वह वीडियो मैंने भी देखा है ।  उसमें कुछ बातें निकल कर हैं - 1. उन दोनों  संतों के साथ कोई श्रावक नहीं दिख रहे ।  2. क्या संघ में दो ही मुनि साथ थे ,या अन्य मुनि गण भी थे और पीछे से आ रहे थे । 3. बिना श्रावकों के ,बिना ध्वजा के कोई भी विहार न हो यह जिम्मेदारी समाज को उठानी ही होगी । 4. दिगम्बर जैन मुनि वेश के बारे में अभी भी आम जन में बहुत भ्रांतियां हैं । इस विषय में जनजागरण हेतु विशेष अभियान चलाने चाहिए ।  5. दिगम्बर जैन मुनि चर्या संघ और धर्म की सकारात्मक जानकारी देने वाले सरल और संक्षिप्त ,प्रभावशाली और भावुक साहित्य ,वीडियो,एनीमेशन,इंटरनेट

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है वास्तव में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है । उनमें परस्पर निमित्त नैमित्तिक संबंध अनादि से हैं और निमित्त को व्यवहार से कर्ता कह दिया जाता है । 'यः परिणमति स कर्ता' ,  प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वभाव रूप ही परिणमन करते हैं ,अतः वे कर्ता हैं और पर में कुछ भी परिणामित नहीं होते अतः उनके वे कर्ता नहीं हैं। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है । तिण्हं सद्दणयाणं...ण कारणस्स होदि; सगसरूवादो उप्पण्णस्स अण्णेहिंतो उप्पत्तिविरोहादो। तीनों शब्द नयों की अपेक्षा कषायरूप कार्य कारण का नहीं होता, अर्थात् कार्यरूप भाव-कषाय के स्वामी उसके कारण जीवद्रव्य और कर्मद्रव्य कहे जा सकते हैं, सो भी बात नहीं है, क्योंकि कोई भी कार्य अपने स्वरूप से उत्पन्न होता है। इसलिए उसकी अन्य से उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। (कषायपाहुड़/1/283/318/4) कुव्वं सभावमादा हवदि कित्ता सगस्स भावस्स। पोग्गलदव्वमयाणं ण दु कत्ता सव्वभावाण।।    अपने भाव को करता हुआ आत्मा वास्तव में अपने भाव का कर्ता है, परंतु पुद्गलद्रव्यमय सर्व भावों का कर्ता नहीं है। (प्रवचनसार/184) भावो कम्मणिमित्तो

सुधरे मतदाता,नेता मतदाता से , राष्ट्र स्वयं सुधरेगा

भारतमंडपम् में महावीर जन्मोत्सव

भारतमंडपम में महावीर जन्मोत्सव  रविवार दिनाँक 21/04/24 तीर्थंकर महावीर जन्मकल्याणक महोत्सव और उनके 2550 निर्वाण महोत्सव के उद्घाटन समारोह के कारण पहली बार भारतमंडपम् जाने का अवसर प्राप्त हुआ ।  जैन धर्म के सभी संप्रदायों ने एक जुट होकर संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर इस कार्यक्रम को अत्यंत अनुशासन एवं गरिमा पूर्ण तरीके से सम्पन्न किया ।  इस कार्यक्रम के प्रमुख श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र तीर्थंकर भगवान् महावीर का अनेकांत और अहिंसा सिद्धांत रहा जिसे वहां उपस्थित सभी साधु संतों और साध्वियों सहित आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने वक्तव्यों में शानदार तरीके से अभिव्यक्त किया ।  2550 निर्वाण महोत्सव मनाने हेतु आचार्य प्रज्ञसागर जी ने उन दिनों समाज को जगाया जब समाज को इसकी खबर ही नहीं थी ,अतः निश्चित रूप से इसकी मुख्य प्रेरणा का श्रेय उन्हें जाता है । उन्होंने सभी संप्रदायों को जोड़ा और इस कार्य की प्रेरणा आज से दो वर्ष पूर्व से ही देना प्रारंभ कर दिया था । संतों साध्वियों ने प्रधान सेवक को अपना आशीर्वाद प्रदान किया जो जरूरी था किंतु उसमें भी थोड़ा अतिरेक के दर्शन हुए , साधु संतों को भ

मेरी आत्मकथा - तीर्थंकर भगवान् महावीर

          मेरी आत्मकथा   - तीर्थंकर   भगवान् महावीर        अनेक लोगों ने मेरे जीवन के बारे में बहुत कुछ लिखा है ,वो सब मेरे ज्ञान का विषय बनता रहता है ,अपने बारे में कुछ न कहो तो जो अन्यान्य लेखक लिखते हैं उसे ही मानकर चलना पड़ता है । इसलिए मैं आज स्वयं ही अपनी कहानी कहना चाहता हूँ । मेरा जन्म और बचपन मुझे मेरी माँ ने ही बताया कि मेरे जन्म के पहले उन्होंने 16 प्रकार के मंगल स्वप्न देखे तो पिताजी ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो ,तुम ऐसे पुत्र की माँ बनने वाली हो जो धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करेगा ।   मुझे पूरा स्मरण तो नहीं लेकिन जब मैं गर्भ में था तब माता पिता इस जगत के विषय भोगों के प्रति अरुचि रखते हुए , बहुत तत्त्व चर्चा करते थे और संसार और शरीर की क्षण भंगुरता का चिंतवन करते हुए , शाश्वत शुद्धात्मा की अनुभूति की बातें करते हुए   प्रातः रोज ही उपवन में भ्रमण करते थे ।उनकी इन चर्चाओं का असर अनजाने ही मुझ पर उसी समय से होने लगा था ।   मेरी माँ प्रतिदिन णमोकार मंत्र की सुबह शाम कई जाप करती थीं , उस मंत्र   की अंतर्ध्वनि और तरंगें मुझे उस समय अंदर ही अंदर महसूस होती थीं ।  

कहीं इस बार भी बुद्ध की आड़ में खो न जाएं महावीर

*कहीं इस बार भी बुद्ध की आड़ में खो न जाएं महावीर* 21 अप्रैल को महावीर जयंती है ।  पिछले साल कई अखबारों ने महावीर की जगह बुद्ध की फ़ोटो छाप दी थी ।  यहाँ तक कि सरकारी विज्ञापनों में भी एक तो बधाई आती नहीं है और यदि कोई आई तो उसमें भी बुद्ध छापे गए ।  मैं दिल्ली के अहिंसा स्थल के पास से जब भी गुजरता हूँ तो ऑटो टैक्सी वालों से जानबूझ कर पूछता हूँ कि भैया ये किनकी मूर्ति यहाँ लगी हुई है ? तो 99% उसे बुद्ध बतलाते हैं । जबकि वहां मुख्य द्वार पर भगवान् महावीर नाम भी लिखा है ।  अब इसमें सारा दोष दूसरों को देने से कुछ नहीं होगा । हमें स्वीकारना होगा कि जहां हमें दिखना चाहिए वहां हम नहीं होते हैं । हमारी शक्ति खुद में ही खुद के प्रचार में लग रही है ।  बाहर बुरा हाल है .... इसके लिए हमारी सामाजिक संस्थाएं निम्नलिखित कदम अभी से उठा सकती हैं -  1. सारे मीडिया हाउस को पत्र लिखकर यह अज्ञानता दूर करना और महावीर का वीतरागी वास्तविक चित्र उपलब्ध करवाना ।  2.व्यक्तिगत संपर्क से इन विसंगतियों को ठीक करना करवाना । 3. मंत्रालयों के कार्यालय जहाँ से ये बधाइयां और चित्र जारी होते हैं ,ट्वीट होत

सिवनी,म.प्र. के प्राचीन जैन मंदिर का कला वैभव

सिवनी,म.प्र. के प्राचीन जैन मंदिर का कला वैभव  जैन दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व.पंडित सुमेरचंद दिवाकर जी की नगरी सिवनी में कई  परंपराएं अद्भुत हैं ।  1.शास्त्र पर छत्र स्थापित करके स्वाध्याय करना । 2.  200 किलो चांदी से बना अद्भुत विशाल जिनेन्द्र देव का रथ जिसमें 100 किलो चांदी द्वारा नवीनीकरण किया गया । कुल 300 किलो चांदी से निर्मित इस रथ को दशलक्षण पर्व,महावीर जन्मकल्याणक के अवसर शोभायात्रा में निकाला जाता है । प्रवचन हेतु पधारे विद्वान् इस रथ पर बैठते हैं ।  3. एक ही प्राचीन जिनालय में बड़ी संख्या में बेदियाँ , अनेकों प्राचीन प्रतिमाएं भी , स्फटिक मणि की विशाल प्रतिमाओं की अलग बेदी ।  4. एक ही मंदिर में अनेक शिखर और वे भी भिन्न भिन्न शैली में निर्मित ।  5.प्रवेश द्वार के करीब निर्मित बेदी में सोने से निर्मित अद्भुत कला युक्त गुम्बद ,दीवारें और छत । प्रो अनेकांत कुमार जैन  30/3/24