प्रिय सुनय आज तुम्हारा जन्मदिन है । बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई । आज तुम पूरे 20 वर्ष के हो गए हो । आज से ठीक बीस वर्ष पहले 2005 को प्रातः लगभग 5:30 पर तुम्हारे जन्म की शुभ सूचना तुम्हारे मामा जी ने मुझे फोन पर दी थी । मुझे याद है वो दिन । उस दिन एक नए पिता का ,एक माता का , एक दादा जी का ,एक दादी जी का ,एक नाना- नानी जी का ,एक चाचा जी का ,एक बुआ जी -फूफा जी का , एक मामा- मामी जी का ,एक मौसा-मौसी जी का जन्म भी हुआ था । तुम्हारे होने से सगे रिश्तों की बगिया भी उत्पन्न हुई थी । तुम्हारा यह बहुत बड़ा भाग्य था कि तुम्हें एक एक ही सही मगर सगे बुआ, चाचा,मामा,मौसी मिल गए । चचेरे और ममेरे रिश्ते तो बहुत ज्यादा मिल गए । रिश्तों से समृद्ध एक जैन परिवार ,जैन कुल में जन्म लेकर तुमने जन्म से ही यह सिद्ध कर दिया कि तुम पूर्व जन्म में कोई बहुत बड़े पुण्यात्मा थे । मनुष्य जन्म मिलना और फिर तीर्थंकरों के महान् देश भारत में जन्म मिलना और फिर जैन कुल मिलना उत्तरोत्तर महा महा दुर्लभ होता है और तुम्हारे महान् भाग्य से ये तुम्हें प्राप्त हो गया है । सोचो ! यदि तुम्हें मा...
कृत्रिम प्राकृत रचनाएं प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली प्राकृत भाषा प्राचीन भारत की स्वाभाविक लोक भाषा थी । यही कारण है कि उसमें सहज रसपूर्ण काव्य लिखे गए । साहित्यिक रूपक , मनोरंजक और मूल्यपरक कथाएं ,गूढ़ दार्शनिक सिद्धांत आदि गद्य और पद्य दोनों में रचे गए । भारतीय इतिहास के गवाह रूप अभिलेख गढ़े गए । कुछ परिवर्तन के साथ फिर अपभ्रंश का दौर आया ,उसमें भी ऐसी ही रचनाएं हुईं । साथ ही प्राकृत की रचनाएं भी होती रहीं । फिर पुरानी हिंदी का दौर आया । उसमें पहले पद्य साहित्य आया फिर गद्य का विकास हुआ और आज जो कुछ भी हम हिंदी के नाम पर खड़ी बोली या जो कुछ भी बोल सुन रहे हैं ,रचनाएं कर रहे हैं वो स्वाभाविक रूप से वक्त के अनुसार परिवर्तित और संवर्धित होती हुई स्वाभाविक भाषा लोक भाषा के रूप में हमारे प्रयोग में है । ये प्राकृत का ही नया रूप है । आज की हमारी स्वाभाविक बोलने की प्रकृति हमारी बोलचाल की आम भाषा हिंदी आदि ही हैं । ये आज की प्राकृत है । अब हमें पुराना साहित्य पढ़ने समझने के लिए जो प्राकृत भाषा में है - पुरानी प्राकृत भाषा,उसकी प्रकृति,उसकी व्य...