अप्रभावित भी रहना होगा .... इस दुनिया में बमुश्किल ज्यादा से ज्यादा 25-50 लोग आपके संपर्क में ऐसे होंगे जिनके कारण आपको अमुक व्यक्ति से, अमुक समाज से ,अमुक जाति से ,अमुक धर्म से ,अमुक क्षेत्र से ,अमुक देश से और सारे संसार से व्यर्थ ही नफ़रत होने लगी होगी । मात्र उन 50 लोगों को ,उनके दुराग्रहों को ,उनके आप पर झूठे प्रभाव को अपने जीवन से निकाल फेंकिये ,फिर देखिए ये दुनिया कितनी खूबसूरत है । फिर आपको गहराई से महसूस होगा कि ये सब इतना बुरा भी नहीं था जितना आपके दिमाग में भर दिया गया था । आपको पहली बार ऐसा लगेगा जैसे अनादि का मिथ्यात्त्व बंधन अचानक टूट गया हो और सम्यक्त्त्व का शुभप्रभात हो गया हो । प्रो अनेकान्त कुमार जैन 12/7/25
'संत निवास' - नामकरण से पूर्व जरा सोचें ? प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली अक्सर कई तीर्थों आदि धार्मिक स्थानों पर जाने का अवसर प्राप्त होता है । विगत वर्षों में एक नई परंपरा विकसित हुई दिखलाई देती है और वह है - संत निवास,संत निलय ,संत भवन , संत शाला आदि आदि नामों से कई इमारतों का निर्माण । हमें गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि हमारे साधु संत उन भवनों में मात्र कुछ दिन या कुछ माह ही प्रवास करते हैं , न कि निवास करते हैं तब अनगारी साधु संतों के आगारत्व को साक्षात् प्रदर्शित करता यह नामकरण कहाँ तक उचित है ? फिर उसमें AC कूलर फिट करवाते हैं अन्य समय में वर्ष भर उस भवन का अन्यान्य सामाजिक कार्यों में उपयोग भी कर लेते हैं लेकिन उस भवन का नामकरण संत निवास कर देते हैं । यहाँ अच्छे भवन निर्माण का निषेध नहीं किया जा रहा है और न ही इस बात का निषेध किया जा रहा है कि उसमें साधु संतों का अल्प प्रवास हो ,यहाँ प्रश्न सिर्फ इतना है कि नामकरण उनके नाम पर क्यों ? और भी बहुत दार्शनिक और साहित्यिक नाम जैसे ' अहिंसा भवन' , ' प्राकृत भवन ' , ' समयसार भवन '...