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प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते

  आगमभासापाइय तित्थयरभगवदो महावीरस्स | जयवंतो जीवंतो पहवंतो वत्ते विस्सम्मि || - तीर्थंकर भगवान् महावीर के आगमों की भाषा प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते      प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन  28/07/24

अपना मन न कमजोर करें

अपना मन न कमजोर करें  ©कुमार अनेकांत वक्त चाहे कितना बोर करे  वो चाहे कितना इग्नोर करे  लोग चाहें कितना शोर करें अपना मन न कमजोर करें  यहां जीत यदि न भी पाओ लोगों से यदि पिछड़ जाओ जग की छद्म आपाधापी में  अपना मन न कमजोर करें  जग जीते और खुद से हारे फिर क्या बचा बोलो प्यारे अपनी दुनिया में जिया करें  अपना मन न कमजोर करें  जो चाहो वो पूरा हो न सके समझें विधि नियत विधान यह होनहार स्वीकार करें  अपना मन न कमजोर करें  क्या हुआ कोई बिछड़ गया जो मिलना वो नहीं मिला असली निधि खुद में खोजें अपना मन न कमजोर करें  जीत वही मनोबल न खोए आत्मानुभूति लक्ष्य संजोए  जग प्रपंच को अब बस करें अपना मन न कमजोर करें 27/7/24