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सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच

*सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच* बात 2009 की है जब मेरी पोस्टिंग जयपुर हो गयी थी ,एक दिन बहुत सुबह मैं मॉर्निंग वॉक करता करता संघी जी के मंदिर पहुंच गया । किसी ने कहा कि अभिषेक होने वाला है तो मन में प्रभु का अभिषेक करने की उत्कंठा सहज ही जागृत हो गयी ।  वहीं स्नान करके,शुद्ध वस्त्रों में अभिषेक की कतार में लग गया । वहां देखा कि पहले अभिषेक की बोली लगने वाली थी । मैंने कभी भी बोली लेकर पहले अभिषेक को तवज्जो इसलिए नहीं दी थी कि मेरी मान्यता थी कि ये काम तो सेठों के हैं । मेरे जैसे नौकरी वाले तो  बाद वाले निःशुल्क अभिषेक से पुण्य अर्जित कर लिया करते हैं ।  मैं चुपचाप पीछे हो लिया ।  बोली शुरू हुई 501,601,701,901, मैं चुपचाप सुनता रहा । फिर पंडित जी ने बोली आगे बढ़ाई 1010,1111,1212,1313,1414, मुझे डिजिट सुनकर हंसी आयी  मैंने मजाक में पंडित जी से पूछा ये क्या है ? माइक के शोर के बीच उन्होंने गलती से ये समझा मैं बोली लेना चाह रहा हूँ और उन्होंने अपने आप ही 1515 की बोली मेरे नाम से बोल दी ।  मैंने स्पष्टीकरण देने की कोशिश भी की किन्तु वे आगे बोली लगाने लगे ।मैं भी चुप हो गया । लेकिन संयो