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संदेश

Modern challenges of the Jainism : some reflections on social media

Quick reflections on some challenges: 1.  Divisions within the religion - Sects and sub sects leading to frictions, tensions over petty issues and seeking control.  This leads to diverting our energies from the larger causes espoused by the religion. 2.  Increasing loss of interest in the religion. 3.  Our individual, family and societal conduct is not becoming of a Jain. 4.  Becoming more of ritualistic. 5.  Focusing more on building temples than spreading the religious values to non Jains 6.  Shrinking population adhering to Jainism. In not so distant future, our demography faces the threat of becoming what Parsis are today in India.                     - Manish Jain,WhatsApp.  1. *No Desire to understand jainism* Modern people find reading holy scirpture a boring and useless  work. They can't follow hard rules and regulations and feels like one who can't follow rules can't understand jainism. They feel those who do this will become saints or monks.

वैरागी अमीर या गरीब नहीं होता

कोई ऐसा वैरागी जिसने लौकिक डिग्री न ली हो किन्तु स्वाध्याय से संपन्न हो वह भी मोक्षमार्गी मोक्ष के लिए ही बनते हैं । किसी का वास्तविक वैराग्य संसार की शैक्षणिक डिग्री धारण करने या न करने पर निर्भर नहीं है । किसी ने ज्यादा धन वैभव छोड़ा तो उस वैरागी की महिमा लोक ज्यादा गाता है लेकिन वैरागी तो वैरागी होता है । कम वैभव छोड़ा तो भी वैराग्य उतना ही है । महत्वपूर्ण है छोड़ना , राग तोड़ना । यह काम एक निर्धन भी कर सकता है उसी स्तर पर , वह तो इस राग से भी निर्विकल्प रहता है कि दुनिया मेरे वैराग्य की महिमा गाएगी कि नहीं ? अधिक धन वैभव छोड़ने वाले के मन में बाद में इस अहंकार की संभावना ज्यादा हो जाती है कि मैं ज्यादा छोड़ कर आया हूं इसलिए मैं अन्य दीक्षित मुनिराज से कुछ ज्यादा श्रेष्ठ हूं। प्रभु ! जो दीक्षित हो गए  , जिन्होंने अपनी आत्मानुभूति के लिए संसार को तज दिया , उनमें भी भेद भाव हम संसारी ही विकसित करते हैं कि किसने कितना छोड़ा ? धन्य हैं हम संसारी । और धन्य हैं वे युवा सन्यासी जो इस दुष्कर पंचमकाल में भी वीतराग मुद्रा धारण करने का साहस करते हैं ।

आपका बेटा सिर्फ कट्टर बन रहा है ज्ञानी नहीं

आपका बेटा सिर्फ कट्टर है और कुछ नहीं  ? - प्रो डॉ० अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली एक दिन एक नवनिर्मित जैन तीर्थ पर सपरिवार जाना हुआ । साथ में एक जैन मित्र का बेटा जो कि स्वयं इंजीनिरिंग का एक होनहार छात्र है,भी साथ गया । सहसा वहां विराजित एक आचार्य परमेष्ठि के दर्शन तथा उनसे तत्व चर्चा का भी सौभाग्य मिला । मेरे पूरे परिवार ने दर्शन कर आशीर्वाद लिया । किन्तु मेरे मित्र का बेटा दर्शन करने नहीं आया । मेरी पत्नी उसे डांट कर लेकर आयी ,तो वह आ गया । आ गया किन्तु उसने झुक कर नमोस्तु नहीं किया । बाद में घर लौटते समय वह कार में बगल की सीट पर बैठा था ,मैंने पूछा - ऐसा क्यों किया ? उसने कहा - वे सच्चे साधु नहीं हैं । .. क्या तुम उन्हें पहले से जानते हो ? - मैंने आश्चर्य से पूछा । नहीं... ..तुम्हें ऐसा क्यों लगा ? ....मेरे पिताजी कहते हैं आज कोई भी साधु सच्चे नहीं हैं । .....क्यों क्या कमी है ? ....वे २८ मूलगुणों का पालन नहीं करते । ......अरे वाह ! तुम्हें तो बड़ा ज्ञान है । जरा बताओ २८ मूलगुण क्या होते हैं ? ......नहीं पता - उसका मासूम सा उत्तर था । मैंने पूछा ...जब तुम्ह

जैन धर्म और भगवान् महावीर : सन्देश,स्लोगन,या सूक्ति वाक्य

विश्व को जैन धर्म और भगवान् महावीर का महान सन्देश प्रस्तुति -डॉ अनेकांत कुमार जैन प्रायः तीर्थक्षेत्रों,सार्वजनिक स्थानों,पोस्टरों,बैनरों आदि पर जैन धर्म के सन्देश प्रकाशित करने के प्रसंग बनते रहते हैं |उन संदेशों में यह भाव भी रहता है कि इन संदेशों को देश-विदेश के सभी धर्मों के लोग पढ़कर प्रभावित हों अतः कुछ सन्देश,स्लोगन,या सूक्ति वाक्य यहाँ इस आशय के साथ संकलित करके प्रस्तुत किये गए हैं ताकि उनका उपयोग करने में आसानी हो- १ . भगवान् दुनिया को बनाने या नष्ट करने वाला नहीं है , वह सिर्फ जानता और देखता है | God is not a creator or destroyer of this world. He is only Knower and Viewer. २ . मौन और आत्म - संयम अहिंसा है। Silence and Self-control is non-violence. ३ . जीव की सबसे बड़ी भूल अपने वास्तविक   रूप को ना पहचानना है , और यह केवल स्वयं को जानकर ही   ठीक की जा सकती है। The greatest mistake of a soul is non-recognition of   itself in real and can only be corrected by recognizing itself. ४ . प्रत्येक आत्मा स्वयं में अ