सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता है। शुभ कर्म को पुण्य और अशुभ कर्म को पाप कहा जाता है

"श्री अजीत पाटनी : सिर्फ नाम ही काफी था !"

"श्री अजीत पाटनी : सिर्फ नाम ही काफी था !" मैं आज भी विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ कि श्री अजीत पाटनी अब इस दुनिया में नहीं हैं। दिगम्बर जैन समाज ने उनके चले जाने से एक जुझारू समर्पित समाजसेवी,पत्रकार खो दिया है। कोलकाता का नाम आये और  श्री अजीत पाटनी जी का स्मरण न हो ऐसा संभव ही नहीं था । मुझे दशलक्षणपर्व पर लगातार कई वर्षों तक कोलकाता के बड़े मंदिर में प्रवचन करने का अवसर प्राप्त हुआ था,उसी दौरान लगातार उनके साथ रहकर उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को करीब से जानने का अवसर भी मिला । मुझे आश्चर्य होता था कि वे बड़ी से बड़ी सामाजिक समस्या को चुटकियों में कैसे सुलझा देते थे ? उन्हीं दिनों के बाद से उनसे मेरी अक्सर बातचीत होती ही रहती थी । जब मैंने प्राकृत भाषा में समाचार पत्र "पागद-भासा"प्रकाशित किया तो उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया ।मुझे पत्रकारिता का ज्यादा अनुभव न होने से इस कार्य में उन्होंने काफी सहयोग भी किया ।  जैनदर्शन से जुड़ी कोई भी जानकारी उन्हें चाहिए तो वे मुझसे अवश्य संपर्क करते थे । मैंने अनुभव किया कि वे व्यक्तिगत रूप से साम्प्रदायिक दृष्टिकोण के नहीं थे

सर्वधर्म समभाव मतलब क्या ?=डॉ अनेकांत कुमार जैन

गुरु  गोविन्द  सिंह  जी  की  ३५० वीं  जयंती  के  अवसर  पर 27 /12/2016  को  धर्म अध्ययन विभाग ,पंजाबी  विश्व विद्यालय  ,पटियाला  द्वारा  आयोजित  सर्व धर्म  समभाव  पर आधारित  राष्ट्रीय  सम्मेलन  के  उद्घाटन  में  प्रदत्त  मुख्य भाषण  का  सार   सर्वधर्म समभाव मतलब क्या ? डॉ अनेकांत कुमार जैन * धर्म एक होता है अनेक नहीं ,इसलिए सर्वधर्म शब्द कहने में मुझे हमेशा संकोच होता है ,जब एक ही है तो सर्व शब्द लगाने की आवश्यकता ही क्या है ? और समभाव ही तो धर्म है तो फिर अलग से इसके उच्चारण का क्या औचित्य है ? हाँ , यहाँ धर्म का अर्थ सम्प्रदाय से लगाया जा रहा है तो बात अलग है | फिर शीर्षक होना चाहिए ‘सर्व सम्प्रदाय अनुयायी समभाव’ |क्यों कि समभाव की आवश्यकता  सम्प्रदायों  को ज्यादा है  और उससे भी ज्यादा उनके अनुयायियों को उसकी आवश्यकता है | धर्म शब्द को अक्सर सीमित अर्थों में देखा जाता है इसीलिए समस्या हो जाती है | समन्वय का मतलब – ‘‘मैं जैन धर्म का अनुयायी हूँ , उन सभी लोगों की मैं चिंता करता हूँ जो जैन हैं | मुझे आपकी भी चिंता हो सकती है ,आपसे मेरा कोई द्वेष नहीं है किन्तु आपके धर्म से

बना रहे बनारस

बना रहे बनारस डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली   होली का तीन दिन का अवकाश , अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ ...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी | इस बार बहुत समय बाद जाना हुआ | लगभग डेढ़ वर्ष बाद ...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी | भला करे भगवान् ....वही जगह , वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु ..... ??? वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता है   | दिल्ली की सपाट , साफ़ सुथरी किन्तु भयावह सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं  खुश था कि चाहे खोजवां हो , या कश्मीरीगंज , अस्सी हो या भदैनी या फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है ...दिल के अन्दर नहीं | भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लग